*अमूल्य रतन* 33
अव्यक्त मुरली दिनांक: 17 मई 1969
शीर्षक: *जादू मंत्र का दर्पण*
*बापदादा और बच्चों का स्नेह*
*बापदादा का स्नेह अविनाशी है।* और _बच्चों का स्नेह_ एकरस नहीं रहता। _या तो बहुत स्नेहमूर्त या संकटमई_ अर्थात् संकट के समय स्नेह रहता है।
ऐसा दर्पण जिसमें अपना मुखड़ा देख सकते हैं और उसमें जो भी कमी दिखे उनको भरे – ऐसे जादू मंत्र का दर्पण जिसे अविनाशी रखने के लिए मुख्य क्वालिफिकेशन –
*जो अर्पणमय होगा उनके पास दर्पण रहेगा।* अर्पण नहीं तो दर्पण भी अविनाशी नहीं रह सकता।
दूसरे शब्दों में *सर्वस्व त्यागी के पास दर्पण होता है।*