*अमूल्य रतन* 50
अव्यक्त मुरली दिनांक: 26 मई 1969
शीर्षक: *संपूर्ण स्नेही की परख*
*बाप में निश्चय बुद्धि* तो है लेकिन *जितना ही बाप में निश्चय है उतना ही बाप के महावाक्यों में हो।* बाप के फरमान और आज्ञा में निश्चय बुद्धि होकर जो फरमान मिला उस पर चलना है।
*टीचर में निश्चय* है, लेकिन उनकी पूरी पढ़ाई जो है उसमें पूर्ण रीति से चलना है।
*गुरु रूप में सतगुरु है, यह पूरा निश्चय* है लेकिन उनके श्रीमत पर चलना है। सिर्फ बाप, टीचर और सतगुरु में निश्चय नहीं लेकिन इसके साथ-साथ *उनके फरमान, उनकी पढ़ाई और उनके श्रीमत पर संपूर्ण निश्चय बुद्धि* होकर चलना है।
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