*अमूल्य रतन*
*25th January 1969
*”समर्पण की ऊंची स्टेज – श्वासों श्वास स्मृति”*
*सर्व समर्पण अर्थात* –
१. देह के अभिमान से भी संपूर्ण समर्पण, देह का अभिमान बिल्कुल ही टूट जाए तब कहा जाए सर्व समर्पणमई जीवन।
२. समर्पण उसको कहा जाता है जो श्वासों श्वास स्मृति में रहे।
*समर्पण की निशानी*
१. चेहरे पर हर्षितमुखता के सिवाय और कुछ भी नहीं होगा।
२. सहनशीलता का गुण होगा और सहनशील होने के कारण एक तो हर्षित और शक्ति दिखाई देगी उनके चेहरे पर निर्बलता नहीं होगी।