*अमूल्य रतन* 02
मुरली दिनांक: 25th January 1969
*मनमना भव का गुह्य अर्थ*
मन बिल्कुल जैसे ड्रामा का सेकंड बाई सेकंड जिस रीति से, जैसे चलता है, उसी के साथ साथ मन की स्थिति ऐसी ही ड्रामा की पटरी पर सीधी चलती रहे। जरा भी हिले नहीं। चाहे संकल्प से या चाहे वाणी से।
*बापदादा की शुभ इच्छा* है कि
1.अव्यक्त स्थिति का हर एक बच्चा अनुभव करें।
2. अव्यक्त मुलाकात का अलौकिक अनुभव करने के लिए अव्यक्त स्थिति में स्थित होना है।
3. अमृतवेले के अलौकिक अनुभव से थकावट दूर हो जाती है।