*अमूल्य रतन* 66
अव्यक्त मुरली दिनांक: 18 जून 1969

*मरजीवा अर्थात्* अपने देह से, मित्र संबंधियों से पुरानी दुनिया, पुराने संस्कारों से मरजीवा।

*मरजीवा बनने के लिए पुरुषार्थ*

जैसे गंदी चीज से बचते हैं वैसे *पुराने संस्कारों से बचना है* इतना जब ध्यान रखेंगे तो औरों को भी ध्यान दिला सकेंगे।

*सर्विस की सफलता के लिए मुख्य गुण – नम्रता*

01. नम्रता आती है निमित्त समझने से।
02. *नम्रता के गुण से सब आपके आगे नमन करेंगे।* जो खुद झुकता है उसके आगे सभी झुकते हैं।

*नम्रता का गुण धारण करने के लिए*

01. शरीर को निमित्त मात्र समझना है।
जैसे बापदादा टेंपरेरी देह में आते हैं ऐसे देह को निमित्त आधार समझो।
02. सर्विस में अपने को निमित्त समझना है।

आधार समझने से अधीन नहीं होंगे।