*अमूल्य रतन* 67
अव्यक्त मुरली दिनांक: 18 जून 1969
“दृष्टि से सृष्टि बनती है” *दृष्टि और सृष्टि का ही गायन क्यों है मुख का क्यों नहीं?*
संगम का पहला पाठ – भाई भाई की दृष्टि से देखो।
अर्थात् पहले दृष्टि को बदलने से सब बातें बदल जाती है *जब आत्मा को देखते हैं तब यह सृष्टि पुरानी देखने में आती है।*
*दृष्टि बदलने से*
01. स्थिति और परिस्थिति भी बदल जाती है।
02. गुण और कर्म अपने आप ही बदल जाते हैं।
03. आत्मिक दृष्टि नेचुरल हो जाती है।
*संगमयुग पर सभी संस्कारों का बीज पड़ता है।*
जो संगमयुग पर अपना राजा बनता है वह सतयुग में प्रजा का राजा बन सकता है।
*यहां के बीज के सिवाय भविष्य का वृक्ष पैदा हो नहीं सकता।*