*अमूल्य रतन* 72
अव्यक्त मुरली दिनांक: 26 जून 1969

*अब शिक्षा स्वरूप बनो*

शिक्षा और आपका स्वधर्म अलग नहीं होना चाहिए। आपका स्वरूप ही शिक्षा होना चाहिए। *कई बातों में वाणी से नहीं अपने स्वरूप से शिक्षा दी जाती है।*

*बच्चों के द्वारा पूछे गए प्रश्न पर बापदादा का उत्तर*

प्रश्न: अब जो बापदादा अन्य तन में आते हैं तो जैसे साकार रूप में मुरली चलाते थे वैसे ही क्यों नहीं चलाते? क्यों भाषा बदली, क्यों तरीका बदला? क्या वैसे ही मुरली चला नहीं सकते हैं?

*जिस तन द्वारा पढ़ाने का पार्ट था वह पढ़ाई का कोर्स पूरा हुआ*, अब फिर पढ़ाई पढ़ाने के लिए नहीं आते।
*वह कोर्स था; उस तन द्वारा पार्ट पूरा हो चुका है।* अभी तो आते हैं मिलने के लिए, बहलाने के लिए।