*अमूल्य रतन* 76
अव्यक्त मुरली दिनांक: 06 जुलाई 1969

*बापदादा बच्चों पर फरमान नहीं चलाते हैं, क्यों?*

बापदादा बच्चों की सेवा करने के लिए सेवक बनकर शिक्षा दे रहे हैं। फरमान नहीं करते हैं परंतु शिक्षा देते हैं।
*क्योंकि बाप टीचर भी है, सतगुरु भी है। अगर बच्चों को फरमान करें और न माने तो* वह भी अच्छा नहीं इसीलिए शिक्षा देते हैं।
*छोटे बच्चों को तो टीका लगाया जाता है, उनको रास्ता बताना होता है,* क्या करना है, कैसे बनना है।

*श्रृंगार*
लाल टीका है सूरत की शोभा। चंदन है आत्मा की शोभा। तुमको जेवर भी सूरत की शोभा के लिए नहीं पहनने हैं। वस्त्र भी दुनिया को दिखाने के लिए नहीं पहनने हैं। _परंतु आंतरिक अपने को ऐसा श्रृंगारना है जो लोक-पसंद व दिल-पसंद हो।_
*लोक पसंद है बाहरमुख। दिल पसंद है अंतर्मुख।*
लोक पसंद – भाषण किया। खुश किया परंतु भाषा का जो रहस्य, तंत है वह एक-एक अपने कर्मेद्रियों में बस जाए तब ही शोभा हो।
*कर्तव्य से दैवी गुणों का शो करना है।*

जितना जो पुरुषार्थ करेंगे उतना नंबर मिलेगा, नसीब को बनाना खुद के हाथ में है।