*अमूल्य रतन* 81
अव्यक्त मुरली दिनांक: 16 जुलाई 1969
*रचयिता आत्माओं पर जिम्मेवारी*
आप सभी को इतना ध्यान रखना है जो कर्म हम करेंगे हमको देख हमारी प्रजा और हमारे द्वापर से कलियुग तक के भक्त भी ऐसे बनेंगे।
_मंदिर भी ऐसा बनेगा। मूर्ति भी ऐसी बनेगी। मंदिर को स्थान भी ऐसा मिलेगा।_
इसलिए *हमेशा लक्ष्य रखो कि हम अभी अकेले नहीं हैं।*
जो रचयिता करेंगे वही रचना करेगी। *अपने ऊपर जिम्मेवारी समझेंगे तो अलबेलापन और आलस्य खत्म हो जाएगा।*
*बापदादा की सौगात*
1. एक ही लगन में हर वक्त रहना। हमारा तो एक दूसरा न कोई। *एकनामी है मन्सा की बात।*
2. *एकानामी। यह है कर्मणा की बात।*
मन्सा और कर्मणा दोनों ही ठीक रहे तो वाणी ठीक रहेगी।