*अमूल्य रतन* 94
अव्यक्त मुरली दिनांक: 23 जुलाई 1969
शीर्षक: *सफलता का आधार परखने की शक्ति*
*बिंदु रूप में स्थित रहने के लिए*
01. *पहले पाठ को पक्का* करो।
02. *कर्म करते हुए* अपने को *अशरीरी आत्मा* महसूस करें।
प्रैक्टिकल में न्यारा होकर कर्तव्य में आना। यह जितना जितना अनुभव करेंगे उतना ही बिंदु रूप में स्थित होते जाएंगे।
03. इसे एक विशेष काम समझकर बीच-बीच में समय निकालो।
04. बिंदु रूप है ही *निराकार और न्यारा।*
जैसी जैसी परिस्थिति है उसी प्रमाण अपनी प्रैक्टिस को बढ़ाते चलो।
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