*अमूल्य रतन* 120
अव्यक्त मुरली दिनांक: 03 अक्टूबर 1969
*संपूर्ण समर्पण अर्थात्*
तन-मन-धन संबंध और समय सब में अर्पण।
अगर मन को समर्पण कर दिया तो *मन को बिना श्रीमत के यूज़ नहीं कर सकते।*
मन सिवाय श्रीमत के एक भी संकल्प उत्पन्न नहीं करें – *इस स्थिति को कहा जाता है समर्पण।*
इसलिए ही मनमनाभव का मुख्य मंत्र है।
अगर मन संपूर्ण समर्पण है तो तन-मन-धन, समय और संबंध शीघ्र उस तरफ लगा सकते हैं।
*मन को समर्पण करना अर्थात्*
01. व्यर्थ संकल्प व विकल्पों को समर्पण करना।
02. मन में सिवाय बापदादा के गुण, कर्तव्य और संबंध के कुछ भी सूझता ही नहीं।
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