*अमूल्य रतन* 161
अव्यक्त मुरली दिनांक: *25 दिसम्बर 1969*
शीर्षक: *अनासक्त बनाने के लिए तन और मन को अमानत समझो*

*नई रौनक लाने के लिए*

हर संकल्प, हर कर्म और वाणी में रूहानियत हो।

*रूहानियत सदा कायम रहे उसके लिए*

01. *अपने को और दूसरों को* जिनके सर्विस के लिए हम निमित्त हैं उन्हों को *बापदादा की अमानत* समझ कर चलना। अमानत न समझने से कमी पड़ जाती है।
02. *मन के संकल्प* जो करते हैं वह भी ऐसे समझ करके करें कि यह मन भी *एक अमानत* है।

अमानत समझने से अनासक्त होंगे। अनासक्त होने से रूहानियत आएगी।

*इतने तक अपने को शमा पर मिटाना है – *

01. “यह मेरे संस्कार है।” यह मेरे संस्कार शब्द भी मिट जाए। जब सब कुछ बाप का है मेरे संस्कार फिर कहां से आए?
02. नेचर भी बदल जाए। तब आप लोगों के अव्यक्त फिचर्स दिखेंगे।

*शिव जयंती की शुभकामनाएं स्वीकार करना जी*