*अमूल्य रतन* 175
अव्यक्त मुरली दिनांक: *23 जनवरी 1970*
शीर्षक: *सेवा में सफलता पाने की युक्तियां*
*सम्मेलन की सफलता के लिए*
01. वह स्पीकर्स और ब्राह्मण स्पीकर्स दूर से ही अलग देखने में आए।
02. आपसे ऐसे अनुभव हो जैसे कि अशरीरी, आवाज़ से परे न्यारे स्थिति में स्थित होकर बोल रहे हैं।
03. चित्रों में भी चैतन्यता हो।
क्योंकि सिर्फ *वाणी का जो बल है वह तो कनरस तक रह जाता है* लेकिन अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर बोलना वह मनरस भी होगा।
*ऐसी प्रजा बनाओ जो थोड़े समय में सहज ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करें*
आंतरिक स्थिति से जो प्रजा बनेगी उसे ही आंतरिक सुख का अनुभव कहा जाता है।
*जितना खुद सहज पुरुषार्थी होंगे, अव्यक्त शक्ति में होंगे उतना ही औरों को भी आप समान बना सकेंगे।*
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