*अमूल्य रतन* 188

अव्यक्त मुरली दिनांक: *24 जनवरी 1970*

*तीव्र पुरुषार्थी अर्थात्*

संकल्प, वाणी, कर्म तीनों एक समान हो उनको तीव्र पुरुषार्थी कहेंगे।

*बाप को याद करने से*

01. ज्ञान आपेही इमर्ज हो जाता है।
02. हर कार्य में बाप की मदद मिल जाती है।
03. याद की इतनी शक्ति है जो अनुभव यहां(मधुबन) पाते हो वह वहां भी स्मृति में रखेंगे तो अविनाशी बन जाएंगे।

*शरीरधारी को चाहिए धन, बाप को चाहिए मन।* तो मन को जहांँ लगाना है वहांँ ही लगा रहे और कहीं प्रयोग न हो।

*किसी को भी ज्ञान सुनाने से पहले* ईश्वरीय स्नेह में खींचना है।
योगयुक्त, अव्यक्त स्थिति में रह दो बोल बोलना भी भाषण करना ही है।

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