*अमूल्य रतन* 191
अव्यक्त मुरली दिनांक: *24 जनवरी 1970*

*माया का वार ना हो इसके लिए*

याद की अग्नि जली हुई होगी तो माया आ नहीं सकेगी। यह लगन की अग्नि बुझनी नहीं चाहिए।

याद की यात्रा में सफल होंगे तो मन की भावनाएं भी शुद्ध हो जाएगी।

*सर्व संबंधों से मुक्त होने के लिए*

_जितना दूसरों को संदेश देते हैं उतना अपने को भी संपूर्णता का संदेश मिलता है।_ क्योंकि दूसरों को समझाने से अपने को संपूर्ण बनाने का ना चाहते हुए भी ध्यान जाता है। _यह सर्विस करना भी अपने को संपूर्ण बनाने का मीठा बंधन है।_
*सर्व संबंधों से मुक्त होने का साधन है एक बंधन में अपने को बांधना।*
यह मीठा बंधन अभी का ही है फिर कभी नहीं होता।

*कर्म सदा ही श्रेष्ठ हो*

*श्रेष्ठ कर्म करने से ही श्रेष्ठ पद मिल सकता है और श्रेष्ठाचारी भी बन जाते हैं।* _एक ही श्रेष्ठ कर्म से वर्तमान भी बन जाता है और भविष्य भी बनता है।_ तो ध्यान रहे सदैव ऐसा ही कर्म करे जो श्रेष्ठ बन जाए।

_अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org*