*अमूल्य रतन* 200
अव्यक्त मुरली दिनांक: *26 जनवरी 1970*
शीर्षक: *याद के यात्रा की सम्पूर्ण स्टेज*

*स्वयं को मेहमान समझने में भी बाप समान*

“यूं तो आप सभी भी अपने को मेहमान समझते हो लेकिन आपके और बाप के समझने में फ़र्क है।”
मेहमान उसको कहा जाता है जो आता है और जाता है। वह था बुद्धियोग का अनुभव, यह है प्रेक्टिकल अनुभव।
*दूसरे शरीर में प्रवेश हो कैसे कर्तव्य करना होता है, यह अनुभव बाप के समान करना है।*
_ऐसे अनुभव हो जैसे यह शरीर लोन लिया हुआ है, कर्तव्य के लिए मेहमान हैं।_

*मेहमान समझने से*

अवस्था न्यारी होगी। उनके बोल और चलन से उपराम स्थिति का औरों को अनुभव होगा।

*ऐसे अनुभव हो*

उस अव्यक्त स्थिति में मन और तन व्यक्त देश में है।

_*अव्यक्त मुरलीयों* से संबंधित कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org*