*अमूल्य रतन* 201
अव्यक्त मुरली दिनांक: *26 जनवरी 1970*
*याद के यात्रा की संपूर्ण स्टेज*
शरीर में होते हुए भी उपराम अवस्था तक पहुंचना है। *बिल्कुल देह और देही अलग महसूस हो। उसको कहा जाता है याद के यात्रा की संपूर्ण स्टेज व योग की प्रैक्टिकल सिद्धि।* ऐसी स्थिति को कर्मातीत अवस्था कहा जाता है।
*कर्मातीत अवस्था अर्थात्*
_देह के बंधन से भी मुक्त।_ *कर्म कर रहे हैं लेकिन उनके कर्मों का खाता नहीं बनेगा जैसे कि न्यारे रहेंगे, कोई अटैचमेंट नहीं होगी।*
_कर्म करने वाला अलग और कर्म अलग है_ ऐसे अनुभव होगा।
_इस अवस्था में जास्ती बुद्धि चलाने की भी आवश्यकता नहीं है।_ संकल्प उठा और जो होना है वही होगा।
*मूलवतन वाया सूक्ष्मरतन*
जैसे साकार वतन में मेला हुआ ऐसे ही सूक्ष्मवतन में होगा। वह फरिश्तों का मेला नजदीक है।
_अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org*