*अमूल्य रतन* 205
अव्यक्त मुरली दिनांक: *26 जनवरी 1970*

*ईश्वरीय स्नेह*

_भविष्य संबंध जोड़ने का साधन है *स्नेह रुपी धागा।*_ जोड़ने का समय और स्थान यह है।

*ईश्वरीय स्नेह भी तब जुड़ सकता है* जब अनेक के साथ स्नेह समाप्त हो जाता है।

*तीव्र पुरुषार्थी अर्थात्* – जो संकल्प में भी माया से हार ना हो।

*इसके लिए* शुद्ध संकल्पों में पहले से ही मन को बिजी रखेंगे तो व्यर्थ संकल्प नहीं आएंगे।

*समय के समान तेज चलने के लिए*

समय में बीती को बीती करने की तेज़ है। वही बात को समय कभी रिपीट नहीं करता। तो पुरुषार्थ की जो भी कमियां है उसमें *बीती को बीती समझ हर सेकंड में उन्नति को लाते जाओ* तो समय के समान तेज चल सकते हो।
*अगर कमजोरीयां रिपीट ना हो तो पुरुषार्थ तेज हो जाएगा।*

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