*अमूल्य रतन* 208
अव्यक्त मुरली दिनांक: *26 जनवरी 1970*

*तीव्र पुरुषार्थी के लक्षण*

वह “कब” शब्द नहीं बोलते, “अब* बोलेंगे। क्योंकि संगमयुग का एक सेकंड पद्मों की कमाई करने वाला भी है और गंवाता भी है।

*परिस्थिति और स्थिति*

जब सर्वशक्तिवान के संतान हो तो क्या ईश्वरीय शक्ति परिस्थिति को नहीं बदल सकती!?
अगर परिस्थितियों के पीछे पढ़ते रहेंगे तो और ही सामना करेंगी। तो उसको छोड़ दो।

*परिस्थितियों को बदलने के लिए*

हिम्मत का पांव रखो। सिर्फ लोक लाज का त्याग और हिम्मत की धारणा चाहिए।
एक दो का सहयोग भी बड़ी लिफ्ट है।

अगर समय प्रमाण *युक्ति नहीं आती* है तो समझना चाहिए *योग बल नहीं* है।

*_स्थिति इतनी पावरफुल हो जो परिस्थितियां स्थिति से बदल जायें।_*

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