*अमूल्य रतन* 214
अव्यक्त मुरली दिनांक: *05 मार्च 1970*
शीर्षक: *जल चढ़ाना अर्थात् प्रतिज्ञा करना।*

*शिवजयंती मनाना अर्थात्*

बच्चों का मनाना अर्थात् एक तो है मिलना और दूसरा है अपने समान बनाना।

*जल अथवा दूध चढ़ाने की रस्म*

जल व दूध चढ़ाने का भावार्थ यह है कि जब कोई भी प्रतिज्ञा करनी होती है तो हाथ में जल उठाते हैं, सूर्य को भी जल चढ़ाते हैं तो अंदर प्रतिज्ञा करते हैं।

प्रतिज्ञा यह है कि *हम आज से एक शिवबाबा के ही बनकर रहेंगे।*
वह लोग पहले स्वयं को देवताओं के सम्मुख जाकर अर्पण होते हैं, फिर जब पक्के हो जाते हैं तो संपूर्ण स्वाहा करते हैं।

*औरों को आप समान बनाने के लिए*

*पहले स्वयं को संपूर्ण न्योछावर करना होगा।*
जैसे वहां यादगार है काशी कलवट खाने का। स्वयं अपनी इच्छा से कटने को तैयार हो जाते हैं। *वैसे यहां भी तैयार हो जाएंगे।* आप लोगों को इच्छा पैदा करने की मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी। यह क्यू लगनी है।