*अमूल्य रतन* 22
अव्यक्त मुरली दिनांक: 17 अप्रैल 1969
_यह पुरुषार्थ शब्द कहाँ तक चलना है? क्या अंत तक ऐसे ही कहते रहेंगे?_ जैसे अब कह रहे हो कि हम पुरुषार्थी है ऐसे ही अंत तक कहेंगे? पुरुषार्थी अंत तक रहेंगे लेकिन वह पुरुषार्थ ऐसा नहीं होगा जैसे अभी कहते हो।
*पुरुषार्थ का अर्थ ही है जो गलती एक बार हो फिर दूसरी बार ना हो।* पुरुषार्थ का लक्ष्य जो होना चाहिए वह *पुरुषार्थी बनने का भी पुरुषार्थ करना है।* पुरुषार्थ का जो *अर्थ है उसमें प्रैक्टिकल में आना है।*