*अमूल्य रतन* 224
अव्यक्त मुरली दिनांक: *23 मार्च 1970*

*संगमयुग का डबल ताज*

एक है स्नेह का दूसरा है सर्विस का। सर्विस का ताज है जिम्मेवारी का ताज। स्थूल है।
स्नेह का ताज सूक्ष्म है।

*सर्व के स्नेही और सर्व के सहयोगी*

जो सर्व त्यागी होते हैं वही सर्व के स्नेही और सहयोगी बनते हैं।
ऐसे *श्रेष्ठ संकल्प वाले श्रेष्ठ पद के अधिकारी बनते हैं।*
_संकल्प में भी सर्व के कल्याण की भावना हो तब ही सर्व प्राप्तियों के अधिकारी बनते हैं।_
ऐसे को ही बापदादा तथा सभी से सत्कार मिलता है। सत्कार का अधिकार लेना भी बड़ी बात है।

*ईश्वरीय संगठन का उद्देश्य*

यह संगठन संस्कारों को मिलाने के लिए होता है।

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