*अमूल्य रतन* 227 अव्यक्त मुरली दिनांक: *26 मार्च 1970* *गुड्डियों का खेल* संकल्पों की रचना करते हो, फिर उसकी पालना करते हो, फिर उनको बड़ा करते हो, फिर उनसे खुद ही तंग होते हो। यह गुड्डियों का खेल नहीं है? *बापदादा व्यर्थ रचना नहीं रचते हैं और बच्चे….?* *बर्थ कंट्रोल* जैसे वहां जनसंख्या अति में जाती है और यहां फिर संकल्पों की संख्या अति होती है। यह भी जन्म है। अब इसको कंट्रोल करना है। *वह गुण जिससे संपूर्णता समीप देखने में आये* उपराम और द्रष्टा। _*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org* |