*अमूल्य रतन* 236 *इस समय का मुख्य पुरुषार्थ – विस्तार को समाना* जिसको समेटना आता है उसको समाना भी आता है। *जिनको विस्तार को समाने का तरीका आ जाता है वही बापदादा के समान बन जाते हैं।* _बीज स्वरूप स्थिति में स्थित होना अर्थात् अपने विस्तार को समाना।_ *साइंस और साइलेंस की शक्ति* जैसे-जैसे साइलेंस की शक्ति सेना पुरुषार्थ करती है वैसे ही वह भी पुरुषार्थ कर रहे हैं। *पहले सायलेंस की शक्ति सेना इन्वेंशन करती है फिर साइंस अपने रूप से इन्वेंशन करती है। जैसे यहां रिफाइन होते जाते हैं वैसे ही साइंस भी रिफाइन होती जाती है।* जो बातें पहले उन्हों को असंभव लगती थी वह अब संभव होती जा रही है। _*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org* |