*अमूल्य रतन* 274 *समाना अर्थात् समान हो जाना।* जितना अपनेपन को समाएंगे उतना ही समानता मूर्त बनेंगे। *अन्य आत्माओं की सेवा करते समय लक्ष्य रहे* _बाप समान बनाना है। आप समान नहीं।_ *लक्ष्य सदैव संपूर्णता का रखना* जो संपूर्ण मूर्त प्रत्यक्ष प्रख्यात हो चुके हैं उसका लक्ष्य नहीं रखना है। जो अब गुप्त है प्रत्यक्ष में नहीं आए हैं उनका भी लक्ष्य नहीं रख सकते। क्योंकि जैसा एम वैसा ऑब्जेक्ट होता है। _*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org* |