*अमूल्य रतन* 274
अव्यक्त मुरली दिनांक: *29 June 1970*

*समाना अर्थात् समान हो जाना।*

जितना अपनेपन को समाएंगे उतना ही समानता मूर्त बनेंगे।

*अन्य आत्माओं की सेवा करते समय लक्ष्य रहे*

_बाप समान बनाना है। आप समान नहीं।_
क्योंकि *आप सामान बनाएंगे तो जो आप में कमी होगी वह उसमें भी आ जायेगी।*
अगर संपूर्ण बनाना है तो आप समान भी नहीं लेकिन बाप समान बनाना है।
बाप समान बनाएंगे तो फालो फादर हो जाएगा।

*लक्ष्य सदैव संपूर्णता का रखना*

जो संपूर्ण मूर्त प्रत्यक्ष प्रख्यात हो चुके हैं उसका लक्ष्य नहीं रखना है। जो अब गुप्त है प्रत्यक्ष में नहीं आए हैं उनका भी लक्ष्य नहीं रख सकते। क्योंकि जैसा एम वैसा ऑब्जेक्ट होता है।

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