*अमूल्य रतन* 273
अव्यक्त मुरली दिनांक: *29 June 1970*

संपूर्ण शब्द को कितना विशाल रूप से धारण किया है चेक करो – *सर्व समर्पण के लक्ष्य से संपूर्ण* बने? जितना समर्पण उतना संपूर्ण।

*समर्पण में चार बातें* / *समर्पण शब्द का विशाल रहस्य*

01. अपना हर संकल्प समर्पण,
02. हर सेकंड समर्पण अर्थात् समय समर्पण,
03. कर्म भी समर्पण,

जो _*अविनाशी संपत्ति सुख, शांति, पवित्रता, प्रेम आनंद की प्राप्ति होती है जन्मसिद्ध अधिकार के नाते उसको भी और आत्माओं की सेवा में समर्पण करना।*_
लौकिक संपत्ति और साथ साथ *ईश्वरीय संपत्ति को भी समर्पण* करके साक्षी स्थिति में रहना।

04. संबंध और संपत्ति जो है वह भी समर्पण।
सर्व संबंध का समर्पण चाहिए।
लौकिक संबंध तो है ही लेकिन यह जो *आत्मा और शरीर का संबंध है उसका भी समर्पण।*

लौकिक का समर्पण करना सहज है लेकिन जो ईश्वरीय प्राप्ति होती है वह भी समर्पण करना अर्थात् महादानी बनना और शुभचिंतक बनना यह नंबरवार होता है।

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