*अमूल्य रतन* 301
अव्यक्त मुरली दिनांक: *06 August 1970*
शीर्षक: *दृष्टि से सृष्टि की रचना*

*अपने आप से पूछो कि क्या हम इन सब में बाप समान बने हैं?*

दृष्टि, वाणी, संकल्प और स्मृति।
जितनी जितनी समीपता उतनी समानता।

*दृष्टि से सृष्टि बदलने की कहावत*

दृष्टि बदलने से सृष्टि बदल ही जाती है। आत्मिक दृष्टि, दिव्य दृष्टि और अलौकिक दृष्टि बनी है?
दृष्टि ठीक नहीं हो तो दो चीजें दिखाई देती हैं देही और देह।

*यथार्थ रूप है देही न कि देह इससे समझो कि दृष्टि ठीक है।*

जो आप की वृत्ति में होगा वैसे अन्य आपकी दृष्टि से देखेंगे। अगर वृत्ति देह अभिमान की है तो आपकी दृष्टि से साक्षात्कार भी ऐसे ही होगा।

*इसलिए वृत्ति की सुधार से अपनी दृष्टि को दिव्य बनाना।*

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