*अमूल्य रतन* 301 *अपने आप से पूछो कि क्या हम इन सब में बाप समान बने हैं?* दृष्टि, वाणी, संकल्प और स्मृति। *दृष्टि से सृष्टि बदलने की कहावत* दृष्टि बदलने से सृष्टि बदल ही जाती है। आत्मिक दृष्टि, दिव्य दृष्टि और अलौकिक दृष्टि बनी है? *यथार्थ रूप है देही न कि देह इससे समझो कि दृष्टि ठीक है।* जो आप की वृत्ति में होगा वैसे अन्य आपकी दृष्टि से देखेंगे। अगर वृत्ति देह अभिमान की है तो आपकी दृष्टि से साक्षात्कार भी ऐसे ही होगा। *इसलिए वृत्ति की सुधार से अपनी दृष्टि को दिव्य बनाना।* _*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org* |