*अमूल्य रतन* 302 अव्यक्त मुरली दिनांक: *06 August 1970* *समानता के लिए दो बातें – आधार मूर्त और उद्धार मूर्त* अपने को सारे विश्व के *आधार मूर्त समझने से* जो भी कर्म करेंगे *जिम्मेवारी* से करेंगे। अलबेलापन नहीं होगा। उद्धार मूर्त बनना है। जितना अपना उद्धार करेंगे उतना औरों का भी उद्धार कर सकेंगे। *तिलक* तिलक लगाना अर्थात् सदा काल के लिए प्रतिज्ञा करना। *पास विद आनर और पास में फर्क* पास विद आनर अर्थात् *मन में भी संकल्पों से सजा ना खायें। धर्मराज के सजाओं की तो बात ही छोड़ो।* _*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org* |