*अमूल्य रतन* 38
अव्यक्त मुरली दिनांक: 18 मई 1969
शीर्षक: *रूहानी ज्ञान योग के ज्योतिषी*

*चेक करो हम किस प्रकार के गुलाब (पुरुषार्थी) हैं*

*रूहे गुलाब* – अर्थात् रुह की स्थिति में रहना और हमेश *रूहानी रूह के नजदीक रहना।*

*सदा गुलाब* – सर्विस में, धारणा में अच्छे हैं, संस्कार शीतल है, रुहानी स्थिति में कमी।

*गुलाब* – *_परमात्मा का हर बच्चा गुलाब है कांटे तो यहांँ हो ही नहीं सकते।_*

*परखना – इस ज्योतिष विद्या की आवश्यकता क्यों है-*

अशुद्ध आत्मा से संभाल करने के लिए। ज्ञान और योग सीखते हैं लेकिन यह परखने की ज्योतिष विद्या भी जाननी है क्योंकि वर्तमान समय जो आने वाला है उसमें *यह गुण नहीं होगा, कमी होगी तो धोखे में आ जाएंगे।*

कुछ आत्माएं अंदर एक और बाहर से दूसरी होंगी परीक्षा के लिए आएंगी, भिन्न भिन्न रूप से आएंगी।