*अमूल्य रतन* 56
अव्यक्त मुरली दिनांक: 09 जून 1969
शीर्षक: *सुस्ती का मीठा रूप – आलस्य*
कोर्स पूरा हो गया। रिवाइज कोर्स भी चल रहा है फिर भी *मुख्य कौनसा अटेंशन कम है जिस कारण अव्यक्त स्थिति कम रहती है-*
अलबेलापन होने के कारण पुरुषार्थ नहीं कर पाते हैं। जिसको सुस्ती कहते हैं। *सुस्ती का मीठा रूप है आलस्य।*
*पुरुषार्थ में तड़प होनी चाहिए।*
_पहले पहले पुरुषार्थ की तड़पन थी।_ *अभी वह तड़पन खत्म हो गई है।* तृप्ति हो गई है। *यह तृप्त आत्मा इस रूप से नहीं बनना है।*
ज्ञान तो समझ लिया, सर्विस तो कर ही रहे हैं।
बांधेलियाँ तड़पती है तो पुरुषार्थ भी तीव्र करती है।
जो बांधेली नहीं वह तृप्त हो जाते हैं। और पुरुषार्थ ….