*अमूल्य रतन* 145
अव्यक्त मुरली दिनांक: 28 नवंबर 1969

*बापदादा का सहयोग*

बापदादा तो किसी ना किसी रूप से साथ निभाने अर्थात् अंगुली पकड़ने की कोशिश करते रहते हैं। इतने तक जो बिल्कुल सांँस निकलने तक, सांँस निकलने वाला भी होता है तो भी जान भरते हैं।

*सहयोग प्राप्त करने के लिए*

स्नेही को सहयोग स्वतः ही प्राप्त होता है। मांगने की आवश्यकता नहीं।

*बीती बातों के चिंतन से मुक्त होने के लिए*

_अगर बीती हुई बातों को सोचते रहेंगे तो यह भी एक समस्या हो जाएगी।_ बीती को परिवर्तन में लाने, बल भरने के लिए उस रूप से सोचो। यह क्यों हुआ, कैसे हुआ, कैसे होगा, क्वेश्चन नहीं करो। फुल स्टॉप लगाओ।

_अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org*