*अमूल्य रतन* 147
अव्यक्त मुरली दिनांक: 28 नवंबर 1969

*पुरुषार्थी जीवन की भूलें*

*पुरुषार्थी को भूलें करने की छुट्टी नहीं है। लेकिन आजकल ऐसे समझ बैठे हैं कि पुरुषार्थी अर्थात् भूलें माफ है।*

“यह ऐसा करता है तो हमको करना पड़ता है।” यह ज्ञानी के बदले अज्ञानी हो गया। यह छोटी-छोटी बातें उल्टी रूप में धारण कर ली है।

*ज्ञान का सही एडवांटेज* जो लेना चाहिए उसके बदले उल्टे रूप से प्रयोग करने से पुरुषार्थ में कमजोरी आती है।

यह पुरुषार्थहीन की बातें हैं लेकिन समझते हैं कि यही पुरुषार्थी जीवन है।

*ज्ञान की प्वाइंट्स को अपने पुरुषार्थ की कमी छिपाने के साधन बना रखे हैं।* इन साधनों को मिटाओ।

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