*अमूल्य रतन* 113
अव्यक्त मुरली दिनांक: 28 सितंबर 1969

*सच्चाई और सफाई का गुह्य रहस्य*

सच्चाई –
*जो करे वही वर्णन करें।* *जो सोचें वही वर्णन करें।* मनसा वाचा कर्मणा तीनों रूपों में।
*_मन में उत्पन्न होने वाले संकल्पों में भी सच्चाई चाहिए।_*

सफाई –
अंदर कोई भी *विकर्म का कचरा ना हो।*
भाव स्वभाव *पुराने संस्कारों का भी कचरा ना हो।*

*जो सच्चा होगा उनकी परख*

01. *प्रभु प्रिय* होगा। सच्चे दिल पर साहेब राजी।
02. *दैवी परिवार का प्रिय* होगा।
03. उनकी नज़र, वाणी और कर्म में ऐसी *परिपक्वता* होगी जो न कभी खुद डगमग होगा और न दूसरों को करेगा।