*अमूल्य रतन* 114
अव्यक्त मुरली दिनांक: 28 सितंबर 1969

*सच्चाई कभी छिप नहीं सकती*

कई समझते हैं हम तो सच्चे हैं लेकिन हमें ऐसा समझा नहीं जाता है – यह भी सच्चाई नहीं है।
*सच्चाई कभी छिप नहीं सकती* और सच्चे सबके प्रिय बन जाते हैं।

*कई ऐसे समझते हैं हम नजदीक नहीं है इसलिए प्रख्यात नहीं है।*

जो सच्चे और पक्के होते हैं वह दूर होते हुए भी अपनी परख छिपा नहीं सकते हैं। कोई कितना भी दूर हो लेकिन बापदादा के नज़दीक होंगे। *जो बाप के नजदीक है वह सब के नजदीक है।*

*सफाई का सबूत चलन में दिखता है।*

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