*अमूल्य रतन* 115
अव्यक्त मुरली दिनांक: 28 सितंबर 1969

*निश्चय बुद्धि अर्थात्*

न बाप में, न बाप की नॉलेज में, न बाप के परिवार में संशय व विकल्प उठना चाहिए।

अगर निश्चय नहीं है तो आपका कर्म भी वैसा ही होगा।
*कमज़ोरी के संकल्प ही संशय है।*
पुराने संस्कार तो मोटी चीज है। लेकिन पुराने संकल्प भी खत्म होने चाहिए।
_जितना अपने आप में निश्चय रखेंगे उतना बापदादा भी मददगार बनते हैं।_

*ज्ञान रत्नों का श्रृंगार करने से* दुनिया को कहने की दरकार ही नहीं कि हमारी तरफ देखो। *सबका ध्यान आप पर होगा।*

*सर्व का सहयोग प्राप्त करने के लिए*

स्नेही को सहयोग मांगनी नहीं पड़ती। *बापदादा के स्नेही बनेंगे तो दैवी परिवार के भी स्नेही बनेंगे।* सभी का सहयोग स्वतः प्राप्त होगा।