*अमूल्य रतन* 116
अव्यक्त मुरली दिनांक: 28 सितंबर 1969

पुरुषार्थहीन व हिम्मतहीन बनना – *अब वह जमाना गया।* अब तो मददगार बनना है और बनकर दिखाना है।

*डबल सर्विस – डबल ताज*

तुम लोगों के चलन वाणी से भी ज्यादा सर्विस करेगी। *जब डबल सर्विस में सफलता होगी तभी डबल ताज मिलेगा।*

*शक्ति रूप बनने का साधन*

शक्ति रूप तभी बन सकेंगे जब अव्यक्त स्थिति होगी।
*अव्यक्त स्थिति में रहकर यदि व्यक्त में आना भी हो तो सिर्फ सर्विस अर्थ।*
सर्विस समाप्त हुई तो फिर अव्यक्त स्थिति।

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